सिन्दूर या खून
रात के भयंकर आँधी तूफान के बाद सवेरे नीँद खुली, देखा
बादल साफ हो गया था, आसमान
साफ था। लोग अपने नीत कर्म में लग
गए थे। अखबार बाले ने अखबार डाल दिया था, दूध
बाले ने दूध का पैकेट रख दिया
था।
सोचा आज तो जाना है कॉलेज, जल्दी से तैयार हो जाती हूँ ।रसोई घर गई चाय बनाते बनाते , उनको आवाज़ दिया... अजी सुनते हो.. चाय बन गई उठ जाओ देखो आँधी तूफान छट गई है।
कोई आवाज़ नहीं....
सोचा सो रहे होंगे... क्यों परेशान करूँ... सोने
देती हूं... थोडी देर बाद उठा दूँगी।
जल्दी से अपना नित्य कर्म खत्म किया…. फिर पुकारा...
अजी सुनते हो ... क्या बनाऊं खाने मैं
फिर कोई जबाब नही...
गुस्सा आया बहुत... क्या हो गया है.. क्यों कुछ जबाब
नहीं दे रहे हैं।
फिर सोचा
... उनकी पसंद का कुछ बनाती हूँ। रसोई घर में गई... पूरी बहुत पसंद करते हैं । पुरी और आलू की सब्जी बनाई .. सोचा उसकी
मेंहक से उठ जाएँगे... फिर
कोई जबाब नहीं...
गुस्से से बोला में कॉलेज के लिये निकल रही हूँ...नही उठ रहे हो…. अकेले अपना सारा काम करके जाना। गुस्से से
कॉलेज के लिए तैयार होने लगी। फिर सोचा उनकी पसंद की
साड़ी पहनती हूँ ....उन्हें नीला रंग बहुत पसंद है..
इसीलिए नीली साड़ी पर सुनहरे रंग की बॉर्डर वाली साड़ी
पहनी.... और खुद को आईने में निहारने
लगी...यकीन नहीं आया प्यारी लग रही थीं।
सोचा आज तो कहर ढउंगी... जब आयेंगे पास तो नखरे दिखाउंगी ... फिर पुकार
लगाई.. अजी सुनते हो.. जा रही
हूँ कॉलेज अभी तो उठ जायो... फिर जबाब नही..
अब तो हद ही हो गई...
ग़ुस्से से
बोला .. सोते रहो....मैं जा रही हूं.. फिर नही आऊँगी, में भी नही
सुनुगी बात तुम्हारा,नही
करूँगी तुमसे बात,नही
दूँगी तुम्हे जबाब ।
परेसान कर रहे हो,
बात नही सून रहे हो,
मायके भाग जाउंगी ,
फिर खोजते रहना, मुझे
पुकारते रहना, फिर में
ना सुनुगी।
फिर कोई जबाब नहीं....
फिर बहुत
मुश्किल से खुद को मनाया ... बोला सो रहे हैं,थके
होंगे सायद... सोने देती
हूँ... जब तयार हूँगी.. उनके पास जाके उठाऊंगी। फिर देखती हूँ कैसे नहीं उठेगें। मुझे देखते ही अपनी और मेरी दोनो की
छुट्टी कर देंगे काम से...
सर्म भी आ रहा था कि सोच क्या रही हूँ।
तैयार होने
के लिए बाल सबारें, कानो मैं
बड़ी बड़ी बालियां पहेने, ढेर सारी
नीले रंग की
चूड़िया पहने, लिपस्टिक
लगाई, फिर सोचा
कुछ तो भूल रही हूँ। तब याद आया
अरे! सिन्दूर तो लगाया ही नहीं... कैसे भूल सकती हूँ... एक नारी की सबसे बड़ी सिंगार है.. बहुत गुस्सा आया खुद पर, सिन्दूर की डिब्बी खोजा, लगाने के लिए डिब्बी पकड़ा !! फिर याद आया....
फिर याद आया...
अरे!आँधी तो मेरे जीवन में आया था... सब तहस नहस
करके चला गया। तूफान से मेरा छोटा सा परिवार टूट गया। सब कुछ बीखर गया।
दौड़ के गई... सिन्दूर लगाने वाले के पास ... ना
सिन्दूर की डिब्बी थी, और ना
सिन्दूर लगाने बाला था।
खाली थी डिब्बी, खाली
था घर, तूफान सब
उड़ा ले गया था।
तभी एक आवाज आई.... मम्मी wao.. पूरी बना है! नीली साड़ी पहनी
हो!कितनी प्यारी लग रही हो।
लगा हाँ!तूफान साफ हो गया है। अभी कुछ तो बचा है
सिन्दूर नहीं तो क्या?
मेरा खून मुझे पुकार रहा है।
उसे बड़ा करना है, जो
बिखर गया है, उसे
संभाला हैं।
डर लगता है, जीवन
मैं अकेले ना पड़ जाऊं पर ... खुद पर यकीन है सब कुछ सही कर दूँगी।
कर लुंगी भगवान पर भरोसा है।
सिन्दूर नहीं तो क्या अपना खून तो
पास है... उसे दुनिया भर की खुशियाँ देनी है, उसे
बड़ा करना है।